आखिर कौन है वैज्ञानिक जिसके कारण आज 15 साल पीछे है भारत,जानिए पूरी कहानी…
नमस्कार दोस्तों इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले है एक ऐसे “देशद्रोही वैज्ञानिक” के बारे में जिसकी वजह से ISRO यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन या जिसे हम इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन के नाम से भी जानते है, वो 10 साल पीछे चला गया था|
तो चलिए शुरू करते है|
एस. नम्बी नारायणन का जन्म 12 दिसम्बर 1941 को नागरकोइल, तमिलनाडु में हुआ था| नम्बी जी अपनी 5 बड़ी बहनों के अकेले भाई थे| पिता नारियल का बिजनेस करते थे और मां हाउस वाइफ थीं| वह प्राइमरी स्कूल से ही पढ़ने में बहुत तेज थे. उन्होंने 10वीं से 12वीं तक अपनी क्लास में टॉप किया था| इसके बाद इंजीनियरिंग करके एक शूगर फैक्ट्री में काम करने लगे. लेकिन उनका मन नहीं माना और उन्होंने ISRO ज्वाइन कर लिया| ISRO में वे एक वैज्ञानिक और एक Aerospace Engineer के तोर पर कम करने लगे|
नम्बी जी को 2019 में भारत का तीसरा सबसे सम्मानित पुरस्कार पदम् भुषण मिल चूका है| इन्होने विकास इंजन को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिस इंजन का उपयोग भारत के पहले पीएसएलवी में किया गया था| लेकिन उन्हें एक ऐसे झूटे केस में फसाया गया जिसका खामियाजा पुरे देश ने चुकाया | इस झूटे केस की वजह से ISRO 10 से 15 साल पीछे चला गया|
हुआ ये था की 1991 में रूस ने ISRO के साथ समझोता किया था जिसके तहत रूस भारत को Cryogenic Engine की तकनीक ट्रान्सफर करने के लिए राजी हो गया था| ये डील 235 करोड़ में रूस के साथ हुई थी क्योकि अमेरिका ने भारत से 950 करोड़ और फ्रांस ने 650 करोड़ रूपये भारत से मांगे थे| और जब ये डील रूस के साथ 235 करोड़ में हुई तो अमेरिका और फ्रांस भारत से नाराज़ हो गए| लेकिन अमेरिका के तत्कालीन रास्त्रपति George H.W Bush ने रूस पर दवाब बनाया और रूस ने cryogenic engine की तकनीक देने से मना कर दिया|
cryogenic engine शून्य से कम तापमान में भी काम करता है| -238 डिग्री Fahrenheit को cryogenic तापमान कहा जाता है| इस तापमान पर cryogenic engine का इंधन यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसेस तरल बन जाती है, और यही तरल ऑक्सीजन गैसेस cryogenic engine में इस्तेमाल होती है और इसी तरल को इंजन के अन्दर जलाया जाता है, और इससे ही cryogenic engine को 4.4 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ़्तार मिल पाती है| लेकिन रूस ने जब ये तकनीक भारत को देने से इनकार कर दिया तो भारत में खुद cryogenic engine को बनाने को सोचा | और तब ISRO ने स्वेदेशी cryogenic engine बनाने का फैसला लिया और एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की| और एस. नम्बी नारायणन को प्रोजेक्ट का डायरेक्टर बनाया गया| और नम्बी जी ने पहली बार भारत में तरल इंधन टेक्नोलॉजी का विकास किया था|
ISRO के PSLV में इसी तकनीक पर आधारित इंजन का इस्तेमाल किया जाता है| उस समय नम्बी जी 2nd PSLV स्टेज और 4th स्टेज PSLV के भी प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे|इसके बाद वो हुआ जिसने भारत की किस्मत को पलट के रख दिया| साल 1994 में नम्बी और उनके साथियो को केरल पुलिस ने कथित जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया| और ऐसा इसीलिए हुआ था क्योकि 20 अक्टूबर 1994 को केरल पुलिस ने मालदीव्स की एक महिला मरियम राशिदा को गिरफ्तार किया था और इस महिला पर ये आरोप था की वो वीसा expire होने के बावजूद भारत में रह रही थी|
लेकिन अगले ही महीने केरल पुलिस ने ISRO के 3 वैज्ञानिको को गिरफ्तार कर लिया | जिसमे एस नम्बी नारायणन, डी. शशि कुमार और के. चंद्रशेखर शामिल थे| पुलिस ने उस वक्त ये कहा था की ISRO के वैज्ञानिको, एस नम्बी नारायणन, डी. शशि कुमार और के. चंद्रशेखर ने महिला को प्रोजेक्ट्स की खुफिया जानकारी और डाक्यूमेंट्स दिए थे और ये सब पकिस्तान को बेचे जा जा रहे थे| और इन सभी पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगा| इनके साथ रुसी स्पेस एजेंसी के एक प्रतिनिधि एस.के. शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया था|
इसके बाद नम्बी जी और उनके साथियो को 50 दिनों तक जेल में सजा काटनी पड़ी और उन्हें 3rd डिग्री टार्चर तक दिया गया और स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन बनाने का प्रोजेक्ट ठप्प हो गया| कहा ये जाता है कि यह सब कुछ अमेरिकन सरकार के इशारे पर किया जा रहा था| अमेरिका भारत के स्पेस प्रोग्राम को रोकना चाहता था, क्योंकि उसका अरबों डॉलर का बिजनेस प्रभावित होने जा रहा था| इसके लिए उस वक्त केरल में मौजूद लेफ्ट सरकार के कई नेताओं और पुलिस अफसरों को मोटी रकम दिए जाने की बात भी कही जाती है|
बाद में इस केस को सीबीआई को सौपा गया और अप्रैल 1996 में इस मामले में सीबीआई ने closure report दाखिल की और इस report में IB की जाँच और उनके अधिकारियो की मंशा पर कई गंभीर सवाल खड़े किये गए थे| सीबीआई ने माबी जी को क्लीन चिट दी थी और ये सिफारिश की थी की जिन्होंने इस केस को गलत तरीके से पेश किया है उनके खिलाफ करवाई की जाए| उसके बाद 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सीबीआई के फैसले को सही मन और नम्बी नारायणन के पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया|
फिर केरल की सीपीएम सरकार ने मामले की जांच दोबारा कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराने से मना कर दिया साथ ही नम्बी नारायण को 1 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया. बाद में नम्बी नारायण ने राष्ट्रीय मानवाधिकार का दरवाजा खटखटाया और 10 लाख रुपए मुआवजे की मांग की. मानवाधिकार आयोग ने 2001 में नम्बी नारायण को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया.
राज्य सरकार ने मानवाधिकार आयोग के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी| जहां मानवाधिकार फैसले को सही ठहराया गया| बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा| सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो नम्बी नारायण को 50 लाख रुपए का मुआवजा दे| और केरला की तत्कालीन सर्कार ने फासिला किया की वो नम्बी जी को 50 लाख नहीं बल्कि 1.3 करोड़ मुआवजे के तौर पर देंगे| सर्वोच्च न्यायालय ने केरल पुलिस के ऑफिसरों की जांच के लिए कमेटी बनाई जिससे पुलिस की असली मंशा का पता लग सके की क्यों उन्होंने नम्बी जो को झूटे केस फसाया| 26 साल की लंबी लड़ाई और पुलिस-प्रशासन से लोहा लेने के बाद साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने उनको बेगुनाह बताया था| बरी तो उन्हें 1998 में ही कर दिया गया था लेकिन उन्हें असली इन्साफ 2018 में मिला जब उनकी क्षतिपूर्ति के लिए उन्हें मुआवजा दिया गया|
यदि नम्बी नारायणन को झूठे केस में फंसाकर जेल नहीं भेजा गया होता, तो आज भारतीय अंतरिक्ष अभियान की कहानी कुछ और होती| नम्बी नारायणन जी ने 35 साल rocketry में गुजारे और जेल में 50 दिन| उन 50 दिनों की जो देश ने किमत चुकाई है उसकी भरपाई दुनिया में कोई नहीं कर सकता| लेकिन मानबी जी की पूरी लाइफ विस्तार से जानने ने के लिए आर. माधवन की लिखी और बनाई गयी film Rocketry: The Nambi Effect जरुर देखे| और इस आर्टिकल को अपने दोस्तों और परिवार वालो के साथ शेयर जरुर करे क्योकि हमे ऐसे महान लोगो को दुनिया से रूबरू करवाना पड़ेगा| जिनका भारत को नंबर 1 बनाने में इतना बड़ा सहयोग रहा है |
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नोट – प्रत्येक फोटो प्रतीकात्मक है (फोटो स्रोत: गूगल)
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